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द हैंग्ड मैन

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



परिवर्तन, उलटफेर, ऊबाऊ, सुधार, पुनर्जन्म, निलंबन, विराम, समर्पण, जाने देना, नए दृष्टिकोण

महर्षी विश्वामित्र की असीम कृपा इवाक्षु वंश का राजा त्रिशंकु पर थी। ठीक उसी तरह आपके उपर आपके गुरू की असीम कृपा है। गुरू की कृपा के कारण आपके जीवन लक्ष्य में जबरदस्त परिवर्तन आ रहा है। कुछ महत्वपूर्ण उलटफेर हो रहे है। होने दीजिए इस ऊबाऊ जीवन में कुछ तो सुधार हो रहा है। मानो की जैसे हर एक चीज का पुनर्जन्म हो रहा है। यह कार्ड एक 'मे'बी' शायद- कार्ड है। दुख दर्द, बीमारी का निलंबन हो रहा है। आपके जीवन से गलत लोग अब विराम लेते हुए निकल जाएंगे।उनके मन में आपके लिए समर्पण की सद्भावना जागृत हो जाएगी। उन लोगों ने आपके विरुद्ध में एक समय पर षडयंत्र रचाए थे। लेकिन शांत रहिए। सब कुछ जाने देना। एक नए दृष्टिकोण के साथ उनको माफ करो। जाने दो। आपको भी मालूम है, मरे हुए को और क्या मारेंगे।

रिवर्स भविष्य कथन



अन्य भविष्यवाणी, बेकार बलिदान, अनिच्छा, देरी, प्रतिरोध, रुकना, अनिर्णय

अगर इस कार्ड के अन्य भविष्यवाणी को देखा जाए तो आप हमेशा बेकार बलिदान देते हैं। जिसकी कोई आवश्यकता नहीं होती। जोश में आकर हमेशा आप जो करते हैं उसका श्रेय आपको नहीं मिलता। कोई भी नया काम शुरू करने में आपको अपनी अनिच्छा का सामना करना पडता है। सम्भवत: उसी के कारण देरी होगी। अपने ही अंतर्मन का प्रतिरोध आपकी काम की गति में रुकना बाध्य करेगी। ना चाहते हुए भी आप अनिर्णय की स्थिती में पहुंच जाओगे। याने की ठीक त्रिशंकु कि अवस्था होगी।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



मुझे पता है कि अब हर भारतीय को ताश के पत्तों की समानता देखकर आश्चर्य होगा (छवि का दोहराना जैसे के तैसा है।) यूरोपीय कलाकार त्रिशंकु को समझ नहीं पा रहे थे। इसलिए उन्होंने इसका नाम 'हैंग्ड मैन' रखा।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


त्रिशंकु की यह छवि ईसा पूर्व छह हजार से अधिक वर्षों से है।

द हैंग्ड मैन दाहिने पैर से लटक रहा है। बायां पैर मुड़ा हुआ है। दोनों हाथ 'ताडासन' मुद्रा नमस्कार में जोडे हुए हैं.. ठीक त्रिशंकु के रूप में।

त्रिशंकु इवाक्षु वंश का राजा था, जिसे महर्षी विश्वामित्र ने सदेह स्वर्ग में भेजा था। इंद्र देव ने उसे वापस धरती पर भेजा तो विश्वामित्र ने दूसरे स्वर्ग का निर्माण किया था। जिससे इवाक्षु धरती और वास्तविक स्वर्ग में लटक गया।

(त्रिशंकु का बहुत ही रोचक विवरण ।)

राजा त्रिशंकु की कहानी का वर्णन वाल्मीकि रामायण के बाल काण्ड में है।

सूर्य वंश के राजा पृथु के पुत्र सत्यव्रत के रूप में जन्मे राजा त्रिशंकु राम के पूर्वज हैं। राजा सत्यव्रत जब वृद्ध होने लगे तो उन्हे राज-पाट त्याग कर अपने पुत्र हरिश्चंद्र को अयोध्या का राजा घोषित कर दिया। राजा सत्यव्रत एक धार्मिक पुरुष थे इसलिए उनकी आत्मा स्वर्ग के योग्य थी परंतु उनकी इच्छा स-शरीर स्वर्ग जाने की थी। इस इच्छा की पूर्ति के लिए उन्होने अपने गुरु ऋषि वशिष्ठ को आवश्यक यज्ञ करने की प्रार्थना की। ऋषि वशिष्ठ ने यज्ञ करने से यह समझते हुये मना कर दिया कि स-शरीर स्वर्ग प्रवेश प्रकृति के नियम के विरुद्ध है। सत्यव्रत अपनी ज़िद पर अड़े रहे और इच्छा की पूर्ति के लिए ऋषि वशिष्ठ के ज्येष्ठ पुत्र शक्ति को अवाश्यक यज्ञ करने के लिए धन एवं प्रसिद्धि का लालच दिया। सत्यव्रत के इस दुस्साहस ने शक्ति को क्रोधित कर दिया और शक्ति ने सत्यव्रत को त्रिशंकु होने का श्राप दे दिया। त्रिशंकु को राज्य छोड़ कर वन भटकने के लिए मजबूर होना पड़ा।

वन में भटकते हुये त्रिशंकु की भेंट ऋषि विश्वामित्र से हुई जिनसे उसने अपनी परेशानी बताई। ऋषि विश्वामित्र, जो ऋषि वशिष्ठ से प्रतिद्वंद्ता रखते थे, त्रिशंकु की प्रार्थना स्वीकार कर ली एवं उसे स-शरीर स्वर्ग पहुंचाने के लिए आवश्यक यज्ञ शुरू कर दिया। यज्ञ के प्रभाव से त्रिशंकु स्वर्ग की ओर उठने लगे। इस अप्राकृतिक घटना से स्वर्ग में खलबली मच गयी। भगवान इन्द्र के नेतृत्व में देवताओं ने त्रिशंकु को स्वर्ग प्रवेश करने से रोक दिया एवं उसे वापस पृथ्वी की ओर फेंक दिया। इस बात से क्रोधित ऋषि विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर के त्रिशंकु का गिरना रोक दिया जिससे त्रिशंकु बीच में लटक गए।

लटके त्रिशंकु ने विश्वामित्र से सहायता की प्रार्थना की। विश्वामित्र ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर बीच में ही एक नया स्वर्ग बना दिया और त्रिशंकु को श्राप से मुक्त करते हुये इस नए स्वर्ग में भेज दिया। त्रिशंकु, जो वापस सत्यव्रत बन गया था, को नए स्वर्ग का इन्द्र बनाने के लिए विश्वामित्र ने तपस्या प्रारम्भ की। इस तपस्या से चिंतित देवताओं ने विश्वामित्र को समझाया कि उन्होने स-शरीर स्वर्ग प्रवेश की अप्राकृतिक घटना को रोकने के लिए त्रिशंकु के स्वर्ग प्रवेश से रोका था। विश्वामित्र देवताओं के तर्क से सहमत हुये परंतु अब उनके सामने अपने वचन को पूरा करने कि दुविधा थी। विश्वामित्र ने देवताओं से समझौता किया कि वो अपनी तपस्या रोक देंगे और देवता सत्यव्रत को नए स्वर्ग में रहने देंगे, एवं सत्यव्रत इन्द्र की आज्ञा की अवहेलना नहीं करेगा।

यह त्रिशंकु की कहानी है जो पृथ्वी एवं स्वर्ग के मध्य अपने लटके हुये स्वर्ग में है। भारत में त्रिशंकु शब्द का प्रयोग ऐसी ही परिस्थितियों के लिए किया जाता है।





प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

द फूल

द मैजिशियन

द हाई प्रिस्टेस

द एम्प्रेस

द एम्परर

द हेरोफंट

द लवर्स

द चैरीओट

द स्ट्रेंग्थ

द हरमिट

द व्हील ऑफ फॉर्चून

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